सुप्रीम कोर्ट ने SBI की एक न सुनी, लगाई फटकार
- sakshi
- Monday Mar,2024
SBI News: भारतीय राज्य बैंक (SBI) के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से एक बड़ा झटका हुआ है। सोमवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने SBI को 12 मार्च तक सभी विवरण प्रस्तुत करने के लिए आदेश दिया है। सुनवाई के दौरान, SBI के पक्ष से पेश हुए सीनियर वकील हरीश साल्वे ने 30 जून तक का वक्त मांगा था जानकारी देने के लिए।
सुनवाई के दौरान, साल्वे ने कहा कि कोर्ट ने SBI को बॉन्ड की खरीद की जानकारी देने के निर्देश दिए हैं और इसमें खरीदारों के साथ-साथ बॉन्ड की कीमत जैसी जानकारी शामिल है। साल्वे ने सुनवाई के दौरान बताया कि राजनीतिक दलों के अलावा, पार्टियों के बॉन्ड्स की जानकारी देनी है, लेकिनइसकी पूरी प्रक्रिया को उलटाना पड़ेगा।
SOP के तहत सुनिश्चित किया गया है कि बॉन्ड खरीदार और बॉन्ड की जानकारी के बीच कोई संबंध नहीं होना चाहिए। इसे गुप्त रखने के लिए एक कोड दर्ज किया गया है, जिसे डिकोड करने में समय लगेगा।
CJI ने कहा कि एसबीआई ने मुंबई मुख्य शाखा को सभी सील की हुई जानकारी भेजी है। पर जानकारी का मिलान करने का निर्देश नहीं दिया गया था, सिर्फ एसबीआई डोनर्स की स्पष्ट जानकारी चाहिए थी।
सीजेआई ने SBI से पूछा कि वह निर्णय अभी तक क्यों नहीं लिए गए है। FAQ में दिखाया गया है कि प्रत्येक खरीद के लिए एक अलग केवाईसी है। जस्टिस खन्ना ने कहा कि सभी जानकारी सीलबंद लिफाफे में हैं और आपको सील कवर खोलकर विवरण देना है।
SBI ने जानकारी ना दे पाने के पीछे दिया ये हवाला
हरिश साल्वे ने SBI की ओर से बताया कि बॉन्ड खरीदने की तारीख और बॉन्ड का नंबर तथा विवरण भी देना होगा। CJI ने पूछा कि फैसला 15 फरवरी को सुनाया गया था और अब 11 मार्च है, तो अब तक क्यों अनुपालन नहीं किया गया है? साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा कि हम सभी सावधानी बरत रहे हैं ताकि हमारे ऊपर गलत माहिती प्रदान करने का कोई मुकदमा न चले। इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा कि मुकदमे की कोई बात नहीं है, आपके पास सुप्रीम कोर्ट के आदेश हैं।
इस मामले पर 5 जजों की बेंच सुनवाई कर रही है, जिसमें चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं.
इलेक्टोरल बॉन्ड Timeline
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और दो गैर सरकारी संस्थाओं, एडीआर और कॉमन कॉज ने सुप्रीम कोर्ट में संशोधनों को चुनौती देने की याचिका दायर की. उनका दावा था कि वित्त अधिनियमों को धन विधेयक के रूप में पारित किया गया, जिससे राज्यसभा (संसद का ऊपरी सदन) से जांच को रोका जा सके। याचिकाकर्ताओं ने जनता के सूचना के अधिकार और योजना में पारदर्शिता की कमी का भी मुद्दा उठाया।
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